Friday, November 14, 2014

आकर्षण

आकर्षण 

हॉल बड़ा सा
भरा हुआ है
भीड़ भड़क्का
हल्ला गुल्ला
धक्का मुक्की
हाथा पाई

दूर दूर से
दिल में हलचल
लोग बहुत हैं
लेकर आए

घना अँधेरा
मँच अकेला
रौशनी: "बेबी"
समां सँभाले
करे उजाले

चमकता चेहरा
तिलस्मी ऑंखें
मुस्कान चकाचैंध
सीना - उभरता
गिरता जाए

मैं अकेला
भीड़ में पीछे
मुट्ठी बंद
हथेलियाँ भींचे

दूर मंच पर
नज़र लगाऊँ
चमकता चेहरा
पहचान न आए

साँस की साज़िश
मन का धोख़ा
मँच से मेरे
मन तक ऐसा
तार कौन सा
खिंचता जाए?

खड़ा सुन्न हूँ
घुप्प अँधेरे

कनपट्टी गीली
गर्म पसीना
छाती फूले
साँस सुलगाए
बात एक पर
समझ ना आए

ख़लिश तार की
बढ़ती जाए
तिलस्मी "बेबी"
जकड़े साँसे
जिस्म हैरान
पिघलता जाए


5/2/1998












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