Tuesday, January 27, 2015

पल | एकांत Pause

पल 


अर्सों से ढून्ढ रहां हूँ
वक़्त की फटी जेब में 
गुमशुदा सिक्कों को

कुछ रंज के सिक्के  
थे कुछ अफ़सोस के 

अब वक़्त आया है
जाड़े की छुट्टी में 
इन्हें खोजने को
 
होम विडियो में
कुछ लम्हें कैद थे  
जिन्हें मैं भूल गया था
अलमारी में रख के 

आज फुर्सत से बैठ कर 
टेप से टीवी के स्क्रीन पर 
मैंने रिहा किया है 
इन लम्हों को 

इन लम्हों की परेड में 
यूँ तो शामिल हैं कईं 
भूली बिसरी हरकतें 

पर एक चेहरे की हरकत   
मैं आगे पीछे ढूँढ रहा हूँ
और फिर ज्यूँ ही  
वह झिलमिलाता चेहरा 
टीवी के स्क्रीन पर गुज़रा 
मैंने "पॉज़" कर 
थाम लिया उस पल को 

अब लौट आया है 
मुट्ठी में वह पल 
जो कभी गुज़ारा था 
गुज़रे हुए चेहरे के साथ 

पर वक़्त बेवफ़ा 
थमता नहीं 
वह फिर चल दिया  
पिघले हुए पल के 
सिक्के को लेकर 


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एकांत


बंद यादों के लिहाफ़ को
अतीत के ट्रंक से 
निकाला है आज 

विषाद की धूप लगा कर 
अब दूर की है 
एकांत की बाँस



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Pause


A time to grieve

          a time to repent
          a time to retrieve
          what was spent

A time to search

          for pennies lost
          from pockets torn
          and fortunes tossed

A time to savor

          a video slice
          of ordinary days
          fallen by the side

Pause!

          look into those eyes
          rewind, replay 
          the long gone lives

Freshen up 
          the memories
          sun them
          in the morning light

The must dissolves

          and the scent returns
          of a moment spent 
          and the time we burned 

A time to seek

          what I dreamt
          and a time to find
          where it went


1/27/15