Saturday, November 15, 2014

मंथन - भँवर

मंथन 

सोचता हूँ
सो करता हूँ
करता हूँ
सो समझता हूँ
समझता हूँ
सो सोचता हूँ
सोच, कर्म, समझ
- मंथन

भँवर 

बिन सोचे
जो करता हूँ
बिन किये
जो समझता हूँ
बिन समझे
जो सोचता हूँ
- भँवर



10/18/2000

1 comment:

Hasya Yoga said...

सराहनीय कविता