इशारा
पहर ने करवट लीश्मा की लौ बढ़ गई
तमाम नज़्मों को समेटे
महफ़िल भी टल गई
पर यूँ बैठे थे तुम
फ़र्श पे गुमसुम
घुटनों में था ना मेरे
बल उठ कर जाने का
तराशे हुए लम्हे को यूँ
थामे हुए था सन्नाटा
सबब ढूंढने लगा मैं
कुछ पल रुक जाने का
लिशक रहा था बेज़ुबान
तेरी नथ का तारा
रोके रहा हमें शब भर
तेरा यह मासूम इशारा
10/18/2000
No comments:
Post a Comment