Saturday, November 15, 2014

इशारा

इशारा 

पहर ने करवट ली
श्मा की लौ बढ़ गई
तमाम नज़्मों को समेटे
महफ़िल भी टल गई

पर यूँ बैठे थे तुम
फ़र्श पे गुमसुम
घुटनों में था ना मेरे
बल उठ कर जाने का

तराशे हुए लम्हे को यूँ
थामे हुए था सन्नाटा
सबब ढूंढने लगा मैं
कुछ पल रुक जाने का

लिशक रहा था बेज़ुबान
तेरी नथ का तारा
रोके रहा हमें शब भर
तेरा यह मासूम इशारा


10/18/2000



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