Friday, November 14, 2014

ख़ान

ख़ान  


(भाग १)

दिल की ख़ान से
जो पत्थर आज खोदे हैं
वो ख़ुद ही गाड़े थे हमने
इन्हीं हाथों से
सदियों पहले


6/14/1999

(भाग २)

पत्थर उगले है आज
ख़ान दिल की -
कुछ कच्चे, कुछ पक्के

खूब सुलगाएंगे इन्हे
कल की यादों से
खूब तराशेंगे इन्हें
भिखरे ख़्वाबों से

जो राख़ हो गए
उन्हें हवा देंगे

जो रह गए
उन्हें दफ़ना देंगे

फिर ख़ान में
सदी भर के लिए

कभी तो आएगी
चमक उम्मीद की
इन चोंचीले पत्थरों में 


11/14/2014



No comments: