Saturday, November 15, 2014

साज़िश

साज़िश 

एक ख्याल यूँ निकला
ज़हन से मगरूर

की ढूँढ ही लेंगे उन
चंद लव्ज़ों को ज़रूर

जिन सिक्कों के बल
हम होंगे मशहूर

....

थी कागज़ की साज़िश
याँ कलम का कसूर

हुई स्याही बेरंग
और दवात फ़िज़ूल

लफ्ज़ रहे लापता
हर शब, बेसबब बेनूर



2/20/2001

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