हुनर एक ना था
पर होनहार हुए हैं
चौबीस रँग फीके
क्या कलाकार हुए है
सौ गुनाह कर निकले
तब मुआफ़ हुए हैं
चोरों से हैं वाक़िफ़
सो हवलदार हुए हैं
आंखें मूँदे थे हम
चश्मदीद गवाह हुए हैं
जला कर अपना घर
अब बेपरवाह हुए हैं
बिन बुलाए थे आये
मगर मेहमान हुए हैं
4/6/17
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