कहानी मीरा की
The Story of Mira
We adopted Mira in Nov 2001, when she was four months old. I wrote this parable soon thereafter, from January 18 through March 13, 2002.
We always wanted to have an open adoption which meant not hiding from Mira the truth of her birth. But there were many questions: How do we talk to a child about adoption? When do we begin the conversation? How do we explain the difficult truth of the choices adults make? The answer we came to was to tell her the truth in an age appropriate way. Most children begin to wonder where babies come from between the ages 4 and 5. So, I wrote this parable to prepare myself for the situation, with the hope to answer the first time Mira asked the question: where did I come from?
Sure enough, one evening as I read her a book at bedtime, she asked the question. Quietly, I shut the book, and slipped into this tale. I told her an abbreviated version of her adoption story in Hinglish - an odd mixture of Hindi and English she was exposed to at our home. Her eyes lit up, but it wasn't clear to me how much she had understood - only that she had grasped a few bits of the story.
Much later, when her Hindi got better, I read her this story. Again, I don't recall whether she understood the parable. I only remember that we both laughed a lot as she recognized names of her cousins and knew the neighborhood ducks and rabbits mentioned in the story. By the time she was seven, she was too old for the story. Her curiosity had burgeoned to ask a more specific question: how was I really born? where and from whom? That was a much harder conversation, as every adoptive parent knows. By then, I hoped that this parable had served its gentle purpose of reminding her that she was cared for before she came to us and we welcomed her with love. Secretly, I hoped that this parable had softened the blow of the truth to come.
So, here is the parable of how Mira was adopted, told to her 4 year old.
एक था राजा, और एक थी रानी। दोनों एक बड़े से शहर के एक छोटे से घर में रहते थे। उनके घर के पास कईं छोटे छोटे तालाब थे, जिनमें नन्हें नन्हें पंछी और तरह तरह के फूल बस्ते थे। तालाब के पास ही एक बड़ा सा किनारा था - एक समुन्दर का। रोज़ जब मीठा सा सूरज धूप बिछाता तो बस्ती के सभी पंछी और बच्चे धूप समेटने आ जाते। शाम तक हरी घांस के टीलों पर और गली गली के झूलों पर बच्चे खेलते रहते।
एक दिन मीठी धूप में बैठते हुए रानी ने एक गहरी साँस ली। राजा ने रानी से पूँछा "इन हरी घांस के टीलों और इन खिलखिलाते फूलों के बीच, तुम यूँ उदास क्यूँ हो?" रानी बोली "इन फूलों के साथ खेलने वाली हमारी भी एक खिलखिलाती परी होती तो कितना अच्छा होता। वह भी इनकी सुगंध बटोरती, इन बतखों के साथ कतार बांधती, हवाओं को गीत सुनती और भागते खरगोशों की ओर उंगली उठा के हैरान होती। काश! हमारी भी एक बेटी होती।"
राजा का मन भर आया। उसने कहा, "रानी, तुम उदास मत हो। कईं सालों से हम एक परी अपने बीच ढूंढते रहे पर पा ना सके। अब हम एक परी दूर देश से ढूंढ कर लाएंगे।" दूर एक बड़े देश के बड़े शहर में राजा और रानी के सब परिवार के प्यार वाले लोग रहते थे। राजा और रानी सात समुन्दर पार उड़ कर अपने परिवार के देश गए।
वहां उन्होंने बैठ कर अपने घरों में सब को कहा कि हम दूर सात समुन्दर पार उड़ कर एक नन्ही परी को ढूंढ़ने आये हैं। यह सुन कर परिवार में सब बहुत खुश हुए। ताली बजा कर सोनाली बोली "आप परी को कहाँ पर ढूंढोगे?" हंसती हुई शगुन बोली "नन्ही परी का नाम क्या रखोगे?" कन्नू और कनक बोले "परी के साथ तो हम बहुत खेलेंगे।"
ज़ोर शोर से राजा और रानी ने परी की तलाश शुरू कर दी। कईं दिनों तक वह दोनों उस बड़े शहर में जगह जगह एक नन्ही परी को ढूंढते रहे। छोटी छोटी गलिंयों में, बड़े बड़े घरों में, शहर के चारों कोनों में जा जा कर उन्होनों सब से पूछा "ज़रा बताओ! हमें एक नन्ही परी कहाँ से मिलेगी?" किसी ने कहा - "हवा से पूछो, उसे सब मालूम है - वह हर जगह पहुँचती है।" किसी ने कहा - "जाओ! बादल से पूछो, वह हर जगह बरसता है।" किसी ने कहा - "जाओ! फूलों से पूछो, वह सब परिओं के साथ खेलते हैं।"
ये सब सुन कर राजा और रानी परी की तलाश में आगे निकल पड़े। रानी ने हवा से पूछा "क्या तुम्हे एक नन्ही परी का पता है?" हवा बोली - "मैं हर जगह उड़ कर हो आई हूँ पर मुझे कोई खबर नहीं किसी नन्हीं परी की।" रानी उदास हो कर आगे निकल पड़ी। राजा ने बढ़ कर बादल से पूछा - "क्या तुम्हे पता है एक नन्ही परी कहाँ मिलेगी?" बादल बोला - "मैं हर जगह जा कर बरस चुका हूँ, पर मुझे किसी परी का पता नहीं मिला।" राजा मायूस हो कर आगे निकल पड़ा। फिर एक बड़े से बगीचे में पहुंच कर राजा और रानी ने बगीचे के एक एक फूल से पूछा - "क्या तुम्हे एक नन्ही परी का पता मालूम है?" सब फूल, एक साथ मिल कर बोले - "हमारे बगीचे की मालकिन से पूछो, उसे पता है। वह सब परिओं की खबर रखती है।"
राजा और रानी बगीचे की मालकिन से मिले और उससे बोले - "हम सात समुन्दर पार से आये हैं। वहां एक बड़े से शहर के एक छोटे से घर में रहते हैं। हमें एक नन्ही परी की तलाश है। क्या आप हमारे लिए एक परी ढूंढ सकती हैं?"
मालकिन मुस्कुरा उठी, और बोली - "मेरे बगीचे में तो हज़ारों परिआं हैं, तरह तरह की। छोटी, बड़ी, नटखट, नादान। तुम्हें कैसी परी की तलाश है? तुम उसे कैसे पहचानोगे?" रानी बोली - "रोज़ वह मेरे सपनों में आती है। अपनी काली काली आँखों से एक टकटकी लगाती है। उसके चौड़े माथे पर काले काले घने बाल बिखरते हैं।" राजा बोला - "रोज़ वह मेरे सपनों में भी आती है। उसकी छोटी छोटी उंगलिआं मेरी उंगली को पकड़ती हैं और फिर वह हलके से मुस्कुराती है।"
बगीचे की मालकिन यह सुन कर कहने लगी - "एक ऐसी ही परी है मेरे बगीचे में। मैं उसे ढूंढ कर तुम्हारे पास लाऊँगी।"
फिर एक दिन मालकिन ने राजा और रानी को बगीचे में बुलाया और एक बड़ा सा गुच्छा उनकी गोद में रख दिया। उस में एक नन्ही परी थी। उसके चौड़े माथे पर काले काले बाल बिखरे हुए थे। वह काली काली आँखों से रानी की ओर टकटकी बांधे देखती रही। रानी के आंसूं भर आए - "अरे! यह तो वही नन्ही परी है जिसकी हमें तलाश है।" फिर उस नन्ही परी ने अपनी छोटी छोटी उँगलियों से राजा की एक उंगली पकड़ ली और हलके से मुस्कुरा दी। राजा बोल पड़ा - "अरे! यह तो वही नन्ही परी है जो हमारे सपनों में आती है।" यह सुन कर परी खुशी से बुलबुले बनाने लगी। राजा और रानी दोनों हँस पड़े और कहा - " इसे हम अपने साथ दूर एक बड़े से शहर में अपने छोटे से घर में ले जाएंगे - हमेशा के लिए।" बगीचे की मालकिन यह सुन कर बहुत खुश हुई और उसने परी को गुच्छे में लपेट कर राजा और रानी को सौंप दिया।
पहले राजा और रानी परी को अपने परिवार में ले आए जहाँ परी के दादा और दादी उसे मिल कर बहुत खुश हुए। दादा ने उसे गोद में खिलाया और दादी ने उसे शहद चटाया। गली मोहल्ले के सभी पड़ोसी परी को देखने आए। सब ने उसे सराहा, गाने सुनाए और खिल खिल के हँसाया। जब सब ने राजा और रानी से पूंछा कि इस परी का नाम क्या है तो वह बोले - "यह है मीरा, प्यार भरी हमारे दिल की राज कुमारी।" कनक और कन्नू ने मीरा को गोद में लेकर खिलाया और "मीरा, मीरा" का शोर मचाया। मीरा की दादी और बुआ ने उसे छोटे छोटे गहने पहनाये।
फिर परी अपने नाना और नानी से भी मिली। नाना ने उसे अपनी बड़ी बाँहों में ले कर पुचकारा और नानी ने उसके सँवारा और परी को सुन्दर कपड़ों में सजाया। परी की बहनें, शगुन और सोनाली, जब उस से मिलने आईं तो बहुत धूम मचा कर दोनों ने मीरा को उठाया। "पहले मैं, पहले मैं" कह कर दोनों लड़ पड़ीं। मीरा की मासी ने बारी बारी मीरा को उनकी गोद में बिठवाया। सोनाली ने कई सवाल पूंछे - " यह बोलती नहीं है? इसको बैठना नहीं आता? क्या यह रोटी नहीं खाती?" शगुन हँस कर बोली - "चल पागल! यह अभी छोटी है - जब यह बड़ी हो जाएगी तो यह बोलेगी, बैठेगी और रोटी भी खायेगी।"
कई दिनों तक इसी तरह परी राजा रानी के परिवार से मिलती रही, खेलती रही। एक दिन जब लौटने का वक़्त आया तो सोनाली ने पूँछा - "अगर आप इसे अपने देश ले जाओगे तो हम इसके साथ खेलेंगे कैसे?" रानी बोली - "इस के साथ खेलने अब तुम हमारे देश आना। और यह भी तुमसे मिलने ज़रूर आएगी।" राजा और रानी के परिवार ने परी को बहुत प्यार से विदा किया और एक दिन, उड़ कर, राजा, रानी और परी वापिस अपने बड़े से शहर के छोटे से घर में लौट आए।
अपने छोटे से घर में पहुँचते ही परी से मिलने बहुत लोग आये - सब राजा और रानी के दोस्त, जान पहचान वाले और प्यार वाले। सब को बड़े गर्व से राजा और रानी ने कहा - "यह मीरा है - हमारी दुलारी बेटी।"
यह सुन कर हरी घांस के टीले पर सब फूल मुस्कुरा उठे। हवाओं ने कई गीत गाये और बतखों ने लम्बी कतारें बाँध कर मीरा का स्वागत किया। भाग कर खरगोशों नें शहर के सब बच्चों को ख़बर दी - "एक है मीरा। राजा और रानी की बेटी। दूर देश से यह परी अब हमारे बीच आई है।" सब बच्चों नें हँस कर ज़ोर से तालिआं बजाईं। और मीरा भी खिलखिला उठी।