पल
अर्सों से ढून्ढ रहां हूँ
वक़्त की फटी जेब में
गुमशुदा सिक्कों को
कुछ रंज के सिक्के
थे कुछ अफ़सोस के
अब वक़्त आया है
जाड़े की छुट्टी में
इन्हें खोजने को
होम विडियो में
कुछ लम्हें कैद थे
जिन्हें मैं भूल गया था
अलमारी में रख के
आज फुर्सत से बैठ कर
अलमारी में रख के
आज फुर्सत से बैठ कर
टेप से टीवी के स्क्रीन पर
मैंने रिहा किया है
इन लम्हों को
इन लम्हों की परेड में
यूँ तो शामिल हैं कईं
भूली बिसरी हरकतें
पर एक चेहरे की हरकत
मैं आगे पीछे ढूँढ रहा हूँ
और फिर ज्यूँ ही
वह झिलमिलाता चेहरा
टीवी के स्क्रीन पर गुज़रा
मैंने "पॉज़" कर
थाम लिया उस पल को
अब लौट आया है
मुट्ठी में वह पल
जो कभी गुज़ारा था
गुज़रे हुए चेहरे के साथ
पर वक़्त बेवफ़ा
थमता नहीं
वह फिर चल दिया
वह फिर चल दिया
पिघले हुए पल के
सिक्के को लेकर
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एकांत
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बंद यादों के लिहाफ़ को
अतीत के ट्रंक से
निकाला है आज
विषाद की धूप लगा कर
अब दूर की है
एकांत की बाँस
Pause
A time to grieve
a time to repent
a time to retrieve
what was spent
A time to search
for pennies lost
from pockets torn
and fortunes tossed
A time to savor
a video slice
of ordinary days
fallen by the side
Pause!
look into those eyes
rewind, replay
the long gone lives
Freshen up
the memories
sun them
in the morning light
The must dissolves
and the scent returns
of a moment spent
and the time we burned
A time to seek
what I dreamt
and a time to find
where it went
1/27/15